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प्रतिनिधि नाम संकल्प

संकल्प का महत्व:

पूजा में संकल्प एक अत्यंत महत्वपूर्ण विधि है जिसमें व्यक्ति अपना नाम, पिता का नाम, गोत्र, निवास स्थान और संकल्प का उद्देश्य स्पष्ट करता है। यह संस्कृत में की जाने वाली एक औपचारिक घोषणा है जो देवता के समक्ष प्रस्तुत की जाती है।

संकल्प की संरचना

संकल्प में निम्नलिखित मुख्य तत्व सम्मिलित होते हैं:

  • काल निर्देश: कलियुग, वर्ष, मास, पक्ष, तिथि का उल्लेख

  • स्थान निर्देश: भारतवर्षे, जम्बूद्वीपे, भरतखण्डे आदि का वर्णन

  • व्यक्तिगत परिचय: नाम, गोत्र, पिता का नाम की जानकारी

  • उद्देश्य: पूजा, व्रत या अनुष्ठान के कारण की स्पष्टता

प्रतिनिधि संकल्प का अर्थ:

प्रतिनिधि संकल्प का तात्पर्य है किसी अन्य व्यक्ति की ओर से पूजा-पाठ संपन्न करना। जब कोई व्यक्ति किसी योग्य व्यक्ति से अपनी ओर से पूजा कराता है, तब यह विधि प्रयोग में आती है। इसमें पूजा करने वाला व्यक्ति संकल्प के समय स्पष्ट रूप से घोषणा करता है कि यह पूजा अमुक व्यक्ति की ओर से संपन्न की जा रही है।

प्रतिनिधि संकल्प की विधि:

  • स्व-परिचय: सर्वप्रथम अपना परिचय प्रस्तुत करते हैं

  • प्रतिनिधित्व की घोषणा: "अमुक व्यक्ति की ओर से" अथवा "अमुक के प्रतिनिधि रूप में" कहते हैं

  • लाभार्थी का विवरण: उस व्यक्ति का पूरा नाम, गोत्र, जन्म नक्षत्र आदि का उल्लेख करते हैं

  • मंगल कामना: उनकी मंगल कामना हेतु पूजा संपन्न करने की बात कहते हैं

प्रतिनिधि संकल्प में इस प्रकार उच्चारण किया जाता है:

"श्री (यजमान का नाम) के निमित्त मम द्वारा इदं (पूजा का नाम) कर्म करिष्ये।"

अर्थात् अमुक व्यक्ति के कल्याण हेतु मैं यह पूजा संपन्न कर रहा हूँ।

व्यावहारिक उदाहरण:

"अहं राम शर्मा, अपने मित्र श्याम गुप्त की ओर से, उसकी मंगलकामना हेतु यह पूजा संपन्न कर रहा हूँ।"

ऐतिहासिक प्रसंग:

  • रामायण काल - जब भगवान राम वनवास में थे तो अयोध्या में महर्षि वसिष्ठ और माता कौशल्या द्वारा राम-सीता के नाम से विविध व्रत और पूजाएँ संपन्न की जाती थीं। यह प्रतिनिधि नाम संकल्प का उत्कृष्ट उदाहरण है।

  • महाभारत काल - जब पाण्डव अज्ञातवास में थे तो द्रौपदी के भ्राता धृष्टद्युम्न द्वारा पाण्डवों के कल्याण हेतु उनके नाम से यज्ञ और हवन संपन्न किए गए थे।

 

  • पुराण काल - स्कन्द पुराण में राजा दिलीप के पुत्र रघु के जन्म हेतु रानी सुदक्षिणा द्वारा गर्भाधान से पूर्व विविध देवताओं की पूजा का वर्णन मिलता है, जो प्रतिनिधि संकल्प का प्रामाणिक उदाहरण है।

आधुनिक प्रसंग:

आज भी जब परिवार के सदस्य दूर हों अथवा रुग्ण हों तो उनके नाम से पूजा-पाठ, हवन-यज्ञ आदि पण्डित जी द्वारा कराए जाते हैं। यह पावन परम्परा हमारी संस्कृति में आज भी पूर्ण जीवन्तता के साथ विद्यमान है। इस प्रकार प्रतिनिधि संकल्प शास्त्रसम्मत विधि है जो विशेष परिस्थितियों में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होती है।

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