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ग्रह दोष: स्वयं जाँच सूची

"कष्ट कमुक्तेश्वर सेवा समिति" का परम लक्ष्य है कि ग्रह दोष के विषय में अधिकाधिक जनजागरूकता का प्रसार करना, जिससे कोई भी साधक अविद्या अथवा अपूर्ण ज्ञान के कारण किसी अंधविश्वास या भ्रष्टाचार का ग्रास न बने। इसी पुनीत लक्ष्य को दृष्टिगत रखते हुए हमने एक विस्तृत सूची का संकलन किया है, जिसके माध्यम से प्रत्येक जातक अत्यंत सरलता से अपने जीवन में संचालित समस्याओं के लक्षणों के आधार पर अपने संभावित ग्रह दोषों के कारण एवं उनके उपचार को जानकर स्वयं ही उनके निवारण व शांति का प्रयास कर सकता है।

यदि कोई जातक चाहे तो वह अपने ग्रह दोष की शांति हेतु हमसे भी संपर्क साध सकता है। हमारे द्वारा भी जातक को निःशुल्क से लेकर अत्यंत न्यूनतम मूल्य में समाधान उपलब्ध कराए जाते हैं।​

 

ग्रह दोष का प्रभाव क्षेत्र:-

जब कोई भी ग्रह जन्मकुंडली में अशुभ अथवा पीड़ित हो जाता है, तो वह जीवन के विविध क्षेत्रों में कष्ट प्रदान करता है।

 

इसे आप निम्नलिखित क्षेत्रों के अनुसार समझ सकते हैं:

  • शिक्षा - विद्या प्राप्ति में बाधा

  • विवाह - विवाह मे विलम्ब, दांपत्य जीवन में कलह

  • व्यापार - व्यवसाय में हानि

  • संतान - संतति प्राप्ति में विलंब, संतान कुमार्ग गामी होना

  • मानसिकता - मानसिक अशांति

  • स्वास्थ्य - शारीरिक व्याधियां

  • संबंध - पारस्परिक संबंधों में कटुता​

​​आपकी जन्मकुंडली में कौन सा ग्रह दोष विद्यमान है? १) सूर्य दोष: लक्षण: यह दोष आत्मबल, राजकार्य, पितृ संबंध एवं मान-प्रतिष्ठा को प्रभावित करता है। इसके कारण पिता से संबंधों में कलह, राजकीय कार्यों में विघ्न, अहंकार की वृद्धि, नेत्र रोग तथा समाज में सम्मान की हानि जैसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। हेतु (कारण): • सूर्य ग्रह का बलहीन होना अथवा पापग्रहों से युक्त होना • पितृ कर्म में शिथिलता • सूर्यनारायण की उपासना में त्रुटि उपचार: • प्रातःकाल सूर्यदेव को अर्घ्य समर्पण • रविवार व्रत का पालन • गुड़ एवं गेहूं का दान • भोजन सेवा • माणिक्य रत्न धारण २) चंद्र दोष: लक्षण: मन, माता, भावनाएँ एवं निद्रा इस दोष से प्रभावित होते हैं। इसके संभावित कष्टों में मातृ संबंधों में तनाव, अत्यधिक चिंता, मानसिक व्याकुलता, निद्रा में व्यवधान तथा भावनात्मक अस्थिरता सम्मिलित हैं, जिससे मन अशांत रहता है। हेतु (कारण): • चंद्रमा का नीच राशि में स्थित होना • राहु-केतु से पीड़ित होना • मातृ अपमान का पाप उपचार: • सोमवार व्रत का पालन • शिवार्चन • चांदी का दान • औषध सेवा • वृक्ष सेवा • मोती रत्न धारण ३) मंगल दोष: लक्षण: विवाह में विलंब या तनाव (मांगलिक दोष), क्रोध, बल, भूमि-संपत्ति एवं दाम्पत्य जीवन इस दोष के प्रभाव में आते हैं। इसके कारण कलहप्रिय स्वभाव, संपत्ति विवाद, रक्त संबंधी व्याधियाँ तथा दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है। हेतु (कारण): • मंगल ग्रह का अशुभ स्थान में अवस्थित होना • भूमि अथवा संपत्ति विवाद • सहोदर कलह उपचार: • मंगलवार व्रत • लाल मसूर का दान • भोजन सेवा • औषध सेवा • मूंगा रत्न धारण ४) बुध दोष: लक्षण: बुद्धि, वाणी, व्यापार एवं त्वचा इस दोष से संबंधित हैं। इसके प्रभावों में संवाद में बाधा, स्मृति की कमी, व्यापार में हानि, त्वचा रोग तथा तंत्रिका तंत्र की गड़बड़ियाँ सम्मिलित हो सकती हैं। हेतु (कारण): • बुध ग्रह का निर्बल होना • विद्या में अनासक्ति • व्यापार में छल-कपट उपचार: • सरस्वती पूजन • बुधवार व्रत • हरित वस्त्र दान • शिक्षा सेवा • पन्ना रत्न धारण ५) बृहस्पति दोष: लक्षण: गुरु, धर्म, विवाह, संतान एवं ज्ञान इस दोष से प्रभावित होते हैं। इसके कारण विवाह या संतान प्राप्ति में बाधा, नैतिक पतन, यकृत संबंधी रोग तथा शिक्षा या गुरुजनों से दूरी जैसी समस्याएँ आ सकती हैं। हेतु (कारण): • गुरु ग्रह का नीच राशि में स्थित होना • गुरुजन अपमान • धर्म कर्म में शिथिलता उपचार: • गुरुवार व्रत, विष्णु पूजन • हल्दी एवं चना दान • शिक्षा सेवा • गौ सेवा • पुखराज रत्न धारण ६) शुक्र दोष: लक्षण: भोग, प्रेम, कला एवं स्त्री सुख इस दोष के प्रभावित क्षेत्र हैं। इसके संभावित कष्टों में वैवाहिक जीवन में तनाव या वियोग, प्रेम संबंधों में धोखा, अत्यधिक कामवासना तथा त्वचा, प्रजनन अंगों व मधुमेह से संबंधित रोग सम्मिलित हैं। हेतु (कारण): • शुक्र ग्रह का निर्बल होना • स्त्री जाति का अपमान • कला में अनासक्ति उपचार: • शुक्रवार व्रत • लक्ष्मी पूजन • चावल एवं दूध दान • हीरा रत्न धारण ७) शनि दोष: लक्षण: कर्म, श्रम, न्याय एवं विलंब इस दोष से जुड़े हैं। इसके प्रभावों में जीवन में निरंतर देरी और रुकावटें, बेरोजगारी, एकाकीपन, उदासी, आलस्य तथा पैर, अस्थि व नाड़ी से जुड़ी समस्याएँ सम्मिलित हो सकती हैं। हेतु (कारण): • शनि की साढ़े साती अथवा ढैया की अवस्था • कर्म दोष • न्याय विरोधी कार्य उपचार: • शनिवार व्रत • हनुमान जी की विशेष आराधना • तेल एवं काले तिल का दान • गौ सेवा, • वृक्ष सेवा • भोजन सेवा • नीलम रत्न धारण ८) राहु दोष: लक्षण: भ्रम, विदेशी वस्तुएँ एवं अकस्मात घटनाएँ इस दोष के मुख्य क्षेत्र हैं। इसके कारण मादक द्रव्य सेवन, न्यायिक विवाद, अकस्मात दुर्घटनाएँ या अपमान, छुपे हुए रोग, मानसिक भ्रम तथा छल-कपट से हानि जैसी स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। हेतु (कारण): • छल-कपट में प्रवृत्ति • राहु का अशुभ प्रभाव • सर्प हत्या का पाप उपचार: • राहु काल में पूजन का त्याग • सर्प दान • नाग पूजन • गौ सेवा, • वृक्ष सेवा • भोजन सेवा • गोमेद रत्न धारण ९) केतु दोष: लक्षण: मोक्ष, त्याग, रहस्य एवं ध्यान इस दोष से प्रभावित होते हैं। इसके संभावित कष्टों में अंतर्मुखी स्वभाव, एकाकीपन, आध्यात्मिक भ्रम, संतान से दूरी तथा त्वचा व मेरुदंड की समस्याएँ सम्मिलित हैं। हेतु (कारण): • आध्यात्म से विमुखता • श्वान को कष्ट देना उपचार: • गणेश पूजन • श्वान को भोजन कराना • ध्यान एवं जप • गौ सेवा • औषध सेवा • लहसुनिया रत्न धारण

विशेष दोष जिनमें कई ग्रह शामिल होते हैं: ​1. 🐍 कालसर्प दोष हेतु (कारण): • जब जन्मकुंडली में समस्त ग्रह राहु एवं केतु के मध्य अवस्थित हों • जन्मपत्रिका में सभी ग्रहों का राहु-केतु के बीच संस्थित होना • पूर्वजन्म के सर्प वध के कारण • नागदेवता का अपमान एवं अनादर लक्षण: • जीवन में निरंतर विफलताएं • संतान प्राप्ति में विघ्न • विवाह में विलंब • अज्ञात भय एवं मानसिक अवसाद • स्वप्न में सर्प दर्शन • व्यापार में क्षति उपचार: • नाग पंचमी पर विशेष पूजन • रुद्राभिषेक संपन्न कराना • नाग मंदिर में दुग्ध अर्पण • रजत निर्मित नाग दान • त्र्यंबकेश्वर में पूजा अर्चना • राहु-केतु के प्रभाव शांति हेतु सुंदरकांड पाठ के साथ हनुमान चालीसा का सप्तवार पाठ 2. 🙏 पितृ दोष हेतु (कारण): • पूर्वजों की अतृप्त आत्माएं • श्राद्ध कर्म की उपेक्षा • पितरों का अपमान • ब्राह्मण हत्या अथवा गो हत्या • श्राद्ध कर्मों का त्याग लक्षण: • संतान न होना • गृह में अशांति • आर्थिक संकट • अकाल मृत्यु का योग • पारिवारिक कलह • स्वप्न में पूर्वजों का दर्शन उपचार: • नियमित श्राद्ध संपन्न करना • गया में पिंडदान • सुंदरकांड का पाठ • ब्राह्मण भोजन कराना • गौ दान करना • नारायण बली कराना 3. 🔴 मांगलिक दोष हेतु (कारण): • जन्मकुंडली में मंगल ग्रह की प्रथम, चतुर्थ, षष्ठ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में स्थिति • पूर्वजन्म के कर्म • मंगल देव का अपमान लक्षण: • विवाह में देरी अथवा रुकावट • वैवाहिक जीवन में कलह • जीवन साथी को हानि • स्वभाव में आक्रामकता • दुर्घटनाएं अथवा रक्त विकार उपचार: • मंगलवार को व्रत • कुंज पूजा करना • हनुमान जी का विशेष पूजन • मांगलिक से ही विवाह • कुम्भ विवाह करना

“ग्रह दोष मिटाएँ, जीवन सुखमय बनाएं।”

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